Tuesday, September 26, 2023
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तो क्या…. जेब में पहुंचना था 35 फ़ीसदी कमीशन, आखिर किसने दी भ्रष्टाचार की परमिशन? विशेष संवाददाता

तो क्या…. जेब में पहुंचना था 35 फ़ीसदी कमीशन, आखिर किसने दी भ्रष्टाचार की परमिशन?

विशेष संवाददाता

– घटिया सामग्री से सड़क निर्माण चढ़ा भ्रष्टाचार की भेंट, कार्यवाही को लेकर यूपीएसआईसी लेट?
– योगी सरकार में जनप्रतिनिधि अपनी ही निधि से कराए हुए विकास कार्यों की गुणवत्ता जांच में पीछे
– जांच कमेटी पर टिकी सबकी निगाहें, भ्रष्ट और कमीशनखोर तलाश रहे बचने की राहें

कानपुर। एक तरफ जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का रुख अख्तियार करते हुए भ्रष्ट और कमीशनखोर अफसरशाही के विरुद्ध जमकर हल्ला बोल रही है तो वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे जिम्मेदार और अफसर अभी भी मौजूद हैं जो सीएम योगी की नीतियों को ठेंगा दिखाते हुए विकास कार्यों में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की पटकथा लिखते नजर आ रहे हैं।

वर्तमान में कानपुर नगर के वार्ड 91 अंतर्गत शास्त्री नगर ऊंचा पार्क में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की नींव तले बनी घटिया सड़क राहगीरों और क्षेत्रवासियों के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है। जहा एक तरफ सड़क निर्माण में डस्ट स्टोन का इस्तेमाल किया गया है, वही दूसरी तरफ जमी हुई सीमेंट से सीसी रोड की ढलाई करने की बात सामने आ रही है। हालाकि अब जब सड़क निर्माण पूरा होने के बाद से ही सड़क में कई स्थानों पर चांद की सतहनुमा बड़े-छोटे कई गड्ढे होते जा रहे है तो वही सड़क पर हर गुजरते वाहन के साथ धूल का उठता गुब्बार अब सांस के रोगियों की संख्या में वृद्धि करने के लिए काफी है।

आपको बताते चलें कि इस सड़क निर्माण के दौरान कई बार विधायक सुरेंद्र मैथानी समेत विधायक प्रतिनिधि को घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल से सड़क निर्माण की शिकायत की गई। बावजूद इसके विधायक निधि द्वारा किए जा रहे इस निर्माण के विरुद्ध कोई भी एक्शन देखने को नहीं मिला। इतना ही नहीं इस घटिया सड़क निर्माण में यूपीएसआईसी के अधिशासी अभियंता सुनील यादव समेत सर्वेयर अपूर्व कटियार की कार्यशैली देखते हुए ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार की इस पूरी पटकथा में ये दोनों ही पूर्ण रूप से संलिप्त हैं। इस घटिया निर्माण का जिम्मा उठाने वाली आरती सेल्स कॉरपोरेशन के विशेष कर्मी द्वारा ऑन कैमरा तो कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया गया किंतु 35 फीसदी कमीशन के बंटवारे की बात दबी जुबान जरूर कही गई। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वाकई जेबों में पहुंचना था 35 फ़ीसदी कमीशन, तभी घटिया सामग्री के इस्तेमाल से सड़क निर्माण की दी गई थी परमिशन?

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